केवलप्रयोगी अव्यय व त्याचे प्रकार

 

केवलप्रयोगी अव्यय

    एकाएकी मनात हर्ष, शोक, भीती, तिरस्कार इ. विकार निर्माण झाले असता ते दर्शविणारे अविकारी शब्द तोंडातून बाहेर पडतात त्यांना ‘केवल प्रयोगी अव्यय’ असे म्हणतात.

                उदाहरणार्थ  :  ओ हो!, अबब!, अरेरे!, आई ग!, छे!, शे  इ.


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केवलप्रयोगी अव्यय व त्याचे प्रकार

केवल प्रयोगी  अव्यायाचे एकूण दहा प्रकार पडतात ते पुढीलप्रमाणे

(१)  हर्षदर्शक 

(२) शोकदर्शक

(३) आश्चर्यदर्शक

(४) प्रशंसादर्शक

(५) संमतीदर्शक

(६) विरोधदर्शक

(७) तिरस्कारदर्शक

(८) संबोधनदर्शक

(९) मौनदर्शक

(१०) व्यर्थअव्यय



(१)  हर्षदर्शक 

        वाह वा, वा-वा, ओह, अ आ आ,  आहा, इ.

(२) शोकदर्शक

      अरेरे!, उं:, अ:, अइई, अआ, आई ग, हाय-हाय, हाय,


(३) आश्चर्यदर्शक

    ऑ, ओह, अबब, ओ:, बापरे, चकचक, अरेच्चा इ.


(४) प्रशंसादर्शक

    शाब्बास, भले, वाह वा, छान, एव, ठीक, हक्कड, खाशी इ.


(५) संमतीदर्शक

    हो, जी, ठीक, बरा, आहे, हा, अच्छा इ.


(६) विरोधदर्शक

    छे, छट, हैट, उ:, उ, च, अ:ह, छे छे. इ.


(७) तिरस्कारदर्शक

    धीक, थू, छी, इश, हुत, हु, फुस, हत, छत, छ इ.


(८) संबोधनदर्शक

    अ ग, अरे, अहो, अगा, अगो, बा, रे इ.


(९) मौनदर्शक

    चूप, चीप, गप, गुपचिप इ.


(१०) व्यर्थअव्यय

    बेटे, आपला, म्हणे, बापडा इ.


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